उन्नत तकनीकों के साथ गेहूं उत्पादन बुवाई का सही समय और विधि-

अक्टूबर से गेहूं की बुवाई की शुरूआत हो जाती है, गेहूं की खेती में बुवाई से लेकर कटाई तक किसान अगर कुछ बातों का विशेष ध्यान रखे तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

उन्नत तकनीकों के साथ गेहूं उत्पादन  बुवाई का सही समय और विधि
उन्नत तकनीकों के साथ गेहूं उत्पादन बुवाई का सही समय और विधि

खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही किसान रबी फसलों की तैयारी शुरूआत कर देते हैं। गेहूं की फसल रबी की अनेक फसलों से एक है, इसलिए किसान कुछ बातों का ध्यान रखकर अधिक उत्पादन पा सकते हैं।

भारत ने पिछले चार दशकों में गेहूं उत्पादन में उपलब्धि हासिल की है। गेहूं का उत्पादन साल 1964-65 में जहां सिर्फ 12.26 मिलियन टन था, जो बढ़कर साल 2019-20 में 107.18 मिलियन टन के एक ऐतिहासिक उत्पादन शिखर पर पहुंच गया है। भारत की जनसंख्या को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा प्रदान करने के लिए गेहूँ के उत्पादन व उत्पादकता में निरन्तर वृद्धि की आवश्यकता है।

एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 तक भारत की आबादी लगभग 1.4 बिलियन होगी और इसके लिए वर्ष 2025 तक गेहूं की अनुमानित मांग लगभग 117 मिलियन टन होगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए नई तकनीक विकसित करनी होगी। नई किस्मों का विकास अथवा उनका उच्च उर्वरता की दशा में परीक्षण से अधिकतम उत्पादन क्षमता प्राप्त की जा सकती है।

उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र देश के सबसे उपजाऊ और गेहूं के सर्वाधिक उत्पादन वाले क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में गेहूं के मुख्य उत्पादक राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा एवं उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू व कठुआ जिले अथवा हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला व पोंटा घाटी भी शामिल हैं।

इस क्षेत्र में लगभग 12.33 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल पर गेहूं की खेती की जाती है और लगभग 57.83 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में गेहूं की औसत उत्पादकता लगभग 44.50 कुं/हैक्टेयर है, जबकि किसानों के खेतों पर आयोजित गेहूं के अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में गेहूं की अनुशंसित प्रौद्योगिकियों को अपनाकर 51.85 कुं/हैक्टेयर की उपज प्राप्त की जा सकता है

पिछले कुछ सालो से इस क्षेत्र में गेहूं की अनेक किस्में एचडी 3086 व एचडी 2967 की बुवाई व्यापक रूप से की जा रही है, जिसमे इन किस्मों के प्रतिस्थापन के लिए अधिक उत्पादन क्षमता एवं रोग प्रतिरोधी किस्में DBW 187, DBW 222 और HD 3226 आदि प्रजातियों को बड़े स्तर पर प्रचारित-प्रसारित किया गया है।

अधिक उत्पादन के लिए करें इन उन्नत प्रजातियों का चयन

उन्नत तकनीकों के साथ गेहूं उत्पादन बुवाई का सही समय और विधि-गेहूं की खेती में किस्मों का चुनाव एक आवश्यक निर्णय है जो ये निर्धारित करता है कि खेती कितनी होगी। हमेशा नई, रोगरोधी व अधिक उत्पादन क्षमता वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए। सिचाई व समय से बीजाई के लिए DBW 303, WH 1270, PBW 723 और सिंचित व देर से बुवाई के लिए DBW173, DBW 71, PBW 771, WH 1124, WH 90 व HD 3059 की बुवाई कर सकते हैं। जबकि अधिक देरी से बुवाई के लिए HD 3298 किस्म की पहचान की गई है। सीमित सिंचाई व समय से बुवाई के लिए WH 1142 किस्म को अपनाया जा सकता है

गेहूं की खेती में सिंचाई प्रबंधन है आवश्यकता

उच्च उपज के लिए गेहूं की फसल को 5 -6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पानी की उपलब्धता, मिट्टी के प्रकार एवं पौधों की आवश्यकता के हिसाब से सिंचाई करनी पड़ती है। गेहूं की फसल के जीवन चक्र में तीन अवस्थाएं जैसे चंदेरी जड़े निकलना (21 दिन), पहली गांठ बनना (65 दिन) एवं दाना बनना (85 दिन) ऐसी हैं, जिन पर सिंचाई करना बहुत जरुरी है। यदि सिचाई के लिए जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो पहली सिंचाई 21 दिन पर इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर अन्य पांच सिंचाई करें। नई सिंचाई तकनीकों जैसे फव्वारा विधि या टपका विधि भी गेहूं की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। कम पानी क्षेत्रों में इनका प्रयोग बहुत पहले से होता आ रहा है। लेकिन जल की बाहुलता वाले क्षेत्रों में भी इन तकनीकों को अपनाकर जल का संचय किया जा सकता है और अच्छी उपज ली जा सकती है। सिंचाई की इन तकनीकों पर केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी के रूप में अनुदान भी दिया जा रहा है।

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